मैं नादान, था परेशान
सच है बात मान ना मान
रिश्तो को मैं समझ ना पाया
कौन है अपना कौन पराया
कौन बुरा है कौन है अच्छा
इन सब में मैं था बङा कच्चा
पथ–पथ पर ही धोखा खाया
दोस्त को अपना दुस्मन पाया
पर अब इन सब से ऊभर चुका हुँ
जो हुआ उसे भुल चुका हूँ
नई डगर हैं दिशा नई हैं
लछ्य एक हैं राह कई हैं |
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